भगवा चोले के खून का देखो आज बहा जब कतरा है,अंतर्मन की पीड़ा


कवि प.महेंद्र शर्मा


अंतर्मन की पीड़ा को आज कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूँ।
आपका साथ मिले


भगवा चोले के खून का देखो आज बहा जब कतरा है
ना लोकतंत्र की हत्या है,ना संविधान को खतरा है।
पुरुस्कार ना वापस होते, ना वामपंथ बिल्लाता है
ना पत्रकार कुछ बोल रहे , ना बॉलीवुड चिल्लाता है।
ना इस्तीफे,ना चिट्ठी है, ना देश पे आफत आई है
ऊपर से लेके नीचे तक हर मुख पर चुप्पी छाई है।
वो काला वाला पर्दा भी अब नहीं चढ़ा है टीवी को
अब क्यों भारत में डर नहीं लगता फिल्मी हीरो की बीवी को।
सेकुलरिज्म के गीदड़ जो कल हर कोठे पर नाचे थे
असहिष्णुता के नाम पे सबने मारे खूब तमाचे थे।
कल जो छोटी सी घटना पर भाषण देते थे बड़े बड़े
पप्पू के वो सारे चमचे, हैं बेशर्मी से मौन खड़े।
खून से लथपथ साधु के तन पर भगवा भी रोया है
शिवसेना का ला-वारिस क्यों आंख बंद कर सोया है।
जिन सन्तों के पैरों पर हमनें अपनी ज़िंदगी वारी है
उन निरपराध सन्तों को तुमने पैरों से ठोकर मारी है।
मैं भी भगवे का पूजक हूँ पीड़ा से आहें भरता हूँ
भारत भर के सन्तों से बस एक निवेदन करता हूँ।
जब चोट पड़े निज स्वाभिमान पर तो शिव का रूप दिखा देना
इन भगवे के हत्यारों को भगवे का अर्थ सिखा देना
इस भीषण समस्या को सब जल्दी ही सुलझाएंगे
पहले कोरोना से निपटेंगे फिर मिलकर आवाज उठाएंगे।